ISSN 0976-8645

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प्राचीन स्तुति साहित्य के संदर्भ मे आधुनिक स्तोत्र काव्य प्रार्थना

   Mamta

 Manjulaben Vasarambhai Parmar

E-mail ID: khanna_vet@yahoo.co.in

Mob no- 09426268794, 09427493296

Abstract- प्राचीन स्तुति साहित्य और आधुनिक कवि श्री हर्षदेव माधवजी के प्रार्थनास्तोत्र के तुलनात्मक अध्ययन से यह निष्कर्ष मिलता है की साधारणतः मनुष्यवृति ही एसी है की कुछ ना कुछ प्राप्ति हेतु प्रभु कि स्तुति करता है, किन्तु प्रार्थनास्तोत्र में कवि श्री कुदरत की दी हुई चीजो के लिए प्रभु का आभार व्यक्त करते है ।

 

वेदकालीन समय से लेकर रामायण, महाभारत, पुराण एवम् लौकिक साहित्य में जो भी स्तुति रुपी साहित्य मिलता है, उसे हम स्तोत्र साहित्य कहते है ।

स्तृ धातु से बने ये शब्द का अर्थ वामन शिवराम आप्टे ने संस्कृत - हिन्दी कोश में - प्रशंसा, स्तुति, गान आदि किया है । स्तुति के लिए संहिता में स्तोम शब्द भी मिलते है।

प्राचीन स्तुति साहित्य -

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः

अद्ब्धासो अरीतास उदिभदः ।

देवो नो यथा सद्मिद वृधे अस -

न्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ।। (ऋग्वेद, 1-89-1)

अर्थात्, सभी दिशाओ से हमे शुभ विचार मिले । देवता हमारी उन्नति में सहायक बने और सुख प्राप्ति मे साथ दे ।

तेजोऽसि तेजो मयि धेहि ।

वीर्यम् असि वीर्य मयि धेहि ।

बलम् असि बलम् मयि धेहि ।

ओजोऽसि ओजो मयि धेहि ।

मन्युर् असि मन्यंु मयि धेहि ।

सहाऽसि सहो मयि धेहि ।। (यजुर्वेद, 19-9)

अथात्, तु मुजमंे तेज का आह्नान कर ।

तु मुजमंे वीर्य (पराक्रम) का आह्नान कर ।

तु मुजमंे शक्ति का आरोपण कर ।

तु मुजमंे ओजस् का आरोपण कर ।

तु मुजमंे मन्यंु तथा प्रताप का आरोपण कर ।

प्रियं मा कृणु देवेषंु प्रियं राजसु मा कृणु ।

प्रियं सर्वस्य पश्यतः उत शुद्र उतार्ये । (अथवर्वेद, 19-62-1)

अर्थात्, मुजे देवताओं में प्रिय होने दो, राजाओ में प्रिय बनाओं । आर्य तथा शुद्रो में सभी सेे प्रिय बनाओ । उपरोक्त वैदिक स्तुति के öारा ऋषि प्रभु से कुछ लेने की कामना व्यक्त करते है । ऋग्वेद के मंत्रो में चतुर्दिशाओ से भद्र (कल्याण कारी) विचारो की भावना व्यक्त हुई है । लौकिक संस्कृत साहित्य में जगन्नाथ, मयुर, पुष्यदंत आदि स्तोत्रकार स्वयं ही दीन, हीन, पामर, अनाथ और लालची तथा मूर्ख होने का दावा करके, इष्टदेव से कुछ ना कुछ माँग लेते है ।

किन्तु इन सबसे अलग होकर गुजरात के संस्कृत साहित्य के शिरोमणि कवि श्री हर्षदेव माधवजी प्रार्थना स्तोत्र में इश्वर के दिये हुए सभी पदार्थो के लिए प्रभु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते है ।

प्रार्थना - कवि श्री हर्षदेव माधव

दानाय दत्तौ कृपया करौ ö

दत्तौ च पादौ गमनाय तीर्थम् ।

नेत्रे प्रदत्ते शिवमंत्र द्रष्टुं

तं धन्यवादैः प्रणमामि देवम् ।।

 

सृष्टः सुधांशु रजनीपति श्च

स्व तेजसा येन रविः प्रसूतः ।

विनिर्मिता येन च तारकाः रवे

तं साधुवादान् कथयामि देवम् ।।

 

रूप प्रदतं कुलजाङग नाभयः

सत्यं प्रदतं तपसा कृशेभ्यः ।

धैर्य  प्रदतं खलु सज्जनेभ्यः

स्तं विस्मरामः कथमेव देवम् ।।

 

नीडेषु गीतं, तरूषु वसन्तः

मेघेषु नीरं, नयनेषु हयश्रु ।

दया जनेषु, हदयेषु स्नेहः

सृष्टं नु सर्वं कृपया त्वयैव ।।

 

गृहेषु दीपः शरीरेषु श्वासः

प्ररोहसि त्वं प्रतिकारकं हि ।

रक्त्तेगतिस्त्वं हदये रतिस्त्वं

त्वां धन्यवादैं र्भगवन् नतोङगम् ।।

- भावस्थिराणि जननान्तर सौहगानि - पृ 148

 

प्रार्थना स्तोत्र की विशेषता:

कवि ईश्वर को धन्यवाद के साथ प्रणाम करते है, क्युंकि ईश्वर के दिये हुये हाथ, पैर, नेत्र आदि बहुत ही मूल्यवान है । सूर्य, चंद्र, तारा आदि के सर्जनहार ईश्वर सचमुच धन्यवाद के पात्र है । कुलाङगना को सुंदरता दी है, तप करनेवालो को सत्य तथा सज्जनो को धैर्य दिया है । ऐसे प्रभु को कैसे भुल सकते है ?

धोंसले में गीत, पेड पर वसंत, बादल मे जल, नयनो में आंसु, मनुष्यो में दया, दिल में प्रेम ये सब ईश्वर की कृपा से ही बना है । गृह में कुल दिपक, शरीर मंे श्वास, फुल की कली का खिलना, प्राणीयों के शरीर में रक्त संचार तथा दिल में भाव भरनार हे प्रभु ! मैं कृतज्ञता से वंदन करता हुँ ।

सामान्यतः मनुष्य की वृत्ति ही ऐसी है कि जो मिला है उसका संतोष नही मगर क्या होना चाहीये वही ढुढता रहता है । किन्तु, कवि श्री हर्षदेव माधव इस स्तोत्र में कुदरत द्वारा दी हुई प्रत्येक चीज के लिए कृतज्ञ होकर प्रभु प्रति आभार व्यक्त करते है ।

 


संदर्भ ग्रंथसूची -

1       संस्कृत - हिन्दी कोश - वामन शिवराम आप्टे ।

2 शिवमहिम्नस्तोत्रम् - सरस्वती प्रकाशन, अहमदाबाद ।

3 भावस्थिराणि जननान्तर सौहदानि - डो हर्षदेव माधव, पाश्व प्रकाशन, अहमदाबाद।

4 संस्कृत वाङगमय का बृहद इतिहास - डो राधावल्लभ त्रिपाठी, संस्कृत संस्थान, लखनउ ।